GANGA KO NIRMAL RAHANE DO,
GANGA KO AVIRAL BAHANE DO.
MAT KHO ISE AMRITDHARA,
GANGA KO GANGA RAHANE DO.
For us the Ganga is not just a river, the entire Indian Philosophy and culture comes from this river. She is a faith, more than a river with which people of India are attached to; spiritually and emotionally for their psycho-religious and socio-cultural activities from times immemorial. The pollution of river means the death of our glorious culture and precious civilization. So, it is the duty of every citizen to save their cultural assets and save the Ganga.
The purity of water depends on the velocity and the dilution capacity of water. It is necessary to maintain the flow of river Ganga for sustain themselves.
पतित, पावनी, मोक्षदायिनी, देवनदी गंगा भारत की प्रतीक हैं। इस भारत भूमि की महान सांस्कृतिक धरोहर है। भारत की पहचान हैं। गंगा पवित्रता की प्रतीक है। हमारे विकास की कहानी गंगा की इन्ही घाटियों में तो लिखी गयी है। मानवता, धर्म, आस्था, कर्म आदि के विकास की उर्वरभूमि 'गंगा आज संकट में है। पतित पावनी,आज पापियों के पाप धोते धेाते मैली ही नहीं बलिक जहरीली हो चुकी है। उसका मूल स्वरूप ही समाप्त सा होता जा रहा है। कही बांध, कही बिजली, कहीं कल-कारखाने तो कही नगरों के गन्दे सीवर नाले सभी गंगा में मिल रहे हैै और उसका 'दम घुट रहा है। गंगा जैसे-जैसे उत्तराखण्ड से आगे बढ़ रही है उस पर खतरा बढ़ता जा रहा है। बांधों के द्वारा उसके मूल 'जल को रेाक कर बिजली बनाने के उधम से उसका मौलिक गुण खत्म होता जा रहा है। गंगा उ0प्र0 में प्रवेष करते समय मूल स्वरूप से हटकर बडे़ नाले के 'शक्ल में बदलती जा रही है। बिहार होते हुए बंगाल की खाड़ी तक पहुंचने में गंगा का वह रूप नहीं रहा है जो कभी वर्शो पूर्व हुआ करता था। आज 'गंगा जगह-जगह से जहरीली और असितत्व में खत्म होती जा रही हैं इंसान विकास की डगर पर विनाश की यात्रा पर है। वह यात्रा जो उसके असितत्व को ही तिल-तिल कर खत्म कर रही है और वह एक आभासी विकास यात्रा पर अन्ध: भागता जा रहा है। 'विकास और 'विनाश के बीच आभासी दूरियां खत्म होती जा रही हैं। |
क्या करें :
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गंगा हम भारतीयों की पहचान है और भारतीय संस्कृति धर्म दर्शन और आध्यात्म की आधारषिला है। हम भारतीयों के लिए गंगा केवल एक नदी नही है बलिक इन्हें एक शकितदायिनी व जीवनदायिनी मा के रूप में विशेष सम्मान प्राप्त हुआ है। गंगाजल में सभी तीर्थो की पवित्रता समार्इ हुर्इ है जो न केवल हमारा आध्यतिमक बलिक आर्थिक व सामाजिक पोषण भी करती है। भारतीयों के तन मन व प्राण की पोषिका एवं असिमता की प्रतीक गंगा आज संकट से जूझ रही है जिसकी रक्षा का दायित्व प्रत्येक व्यकित का है। आज भारत के राष्ट्रीय नदी के आसित्व पर संकट मंडरा रहा है। हम सभी का यह नैतिक कर्तव्य बनता हे कि हम प्राणदायिनी को प्रदूषण से मुक्त करें तथा भारत के गौरव की रक्षा करें। |
क्या न करें :
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